भारत छोड़ो आंदोलन :
📌 परिचय (Introduction) :
8 अगस्त 1942 ई को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक ग्वालिया टैंक मुंबई में आयोजित की गई थी। इस बैठक में अंग्रेजों भारत छोड़ो का प्रस्ताव पारित किया गया।'भारत छोड़ो आंदोलन' (Quit India Movement) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐतिहासिक मोड़ था। यह आंदोलन 8 अगस्त 1942 को बंबई (अब मुंबई) में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति द्वारा शुरू किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य था: ब्रिटिश शासन को भारत से तत्काल हटाना। यह आंदोलन महात्मा गांधी के "करो या मरो" (Do or Die) के आह्वान के साथ शुरू हुआ, जिसने लाखों भारतीयों को एकजुट किया। ग्वालिया टैंक के मैदान में हुई कांग्रेस का कमेटी की बैठक में निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किए गए:
1. भारत में ब्रिटिश शासन को तुरंत समाप्त किया जाए।
2. बैठक में यह घोषणा की गई कि स्वतंत्र भारत सभी प्रकार की फासीवाद एवं साम्राज्यवादी शक्तियों से स्वयं की रक्षा करेगा तथा अपनी अक्षुण्णता को बनाए रखेगा।
3. भारत से अंग्रेजों की वापसी के पश्चात कुछ समय के लिए अस्थाई सरकार की स्थापना की जाएगी।
4. ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सविनय अवज्ञा आंदोलन का समर्थन किया गया।
5. इस बैठक में गांधी जी को संघर्ष का नेता घोषित किया गया।
🗓️ भारत छोड़ो आंदोलन की पृष्ठभूमि
1. द्वितीय विश्व युद्ध (1939–1945) में भारत को बिना किसी परामर्श के युद्ध में शामिल कर दिया गया।
2. भारतीयों में असंतोष बढ़ रहा था क्योंकि ब्रिटिश शासन स्वतंत्रता की कोई ठोस गारंटी नहीं दे रहा था।
3. 1942 में क्रिप्स मिशन भारत आया, लेकिन इसकी असफलता ने स्थिति को और गंभीर कर दिया।
4. इस सबके बीच, महात्मा गांधी ने अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश दिया – "अंग्रेजों! भारत छोड़ो"।
🪧 भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत :
1. 8 अगस्त 1942 को मुंबई के गौवालिया टैंक मैदान (अब अगस्त क्रांति मैदान) में महात्मा गांधी ने ऐतिहासिक भाषण दिया।
2. उन्होंने "करो या मरो" का नारा दिया।
3. अगले ही दिन, यानी 9 अगस्त को गांधीजी, नेहरू, पटेल समेत लगभग सभी बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए।
🔥 आंदोलन की प्रमुख विशेषताएं :
1. नेतृत्व गांधीजी का 'करो या मरो' आह्वान
2. स्वरूप देशव्यापी जनांदोलन
3. भागीदारी किसानों, मजदूरों, विद्यार्थियों, महिलाओं की बड़ी भागीदारी
4. हिंसा गांधीजी अहिंसा के पक्ष में थे, परंतु कई स्थानों पर आंदोलन उग्र रूप ले गया
5. भारत छोड़ो आंदोलन की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी, की देश के कई स्थानों में समानांतर सरकारों की स्थापना की गई।
6. बलिया, तामलुक और सतारा में समानांतर सरकार की स्थापना की गई। बलिया में चित्तू पांडे के नेतृत्व में लोगों ने स्थानीय जिलाधिकारी से शासन के सभी अधिकार छीन लिए और जेल में बंद सभी कांग्रेस नेताओं को रिहा कर दिया तथा समानांतर सरकार की स्थापना की।
🌍 आंदोलन का प्रभाव :
1. सरकार ने क्रूर दमन नीति अपनाई।
2. हजारों लोग गिरफ्तार हुए, लाठीचार्ज, गोलीबारी, सेंसरशिप आम हो गई।
3. लेकिन आंदोलन ने स्पष्ट कर दिया कि अब ब्रिटिश शासन अधिक समय तक नहीं टिक सकता।
4. यह आंदोलन भारत की आज़ादी की अंतिम निर्णायक लड़ाई के रूप में देखा जाता है।
🧑🤝🧑 आंदोलन में जनभागीदारी :
1. महिलाओं की भूमिका: अरुणा आसफ अली, उषा मेहता, कस्तूरबा गांधी आदि ने नेतृत्व किया।
2. छात्र और युवा: भूमिगत रेडियो, पर्चे, हड़तालें, प्रदर्शन आदि के ज़रिए सक्रिय योगदान दिया।
3. किसान और मजदूर: रेलवे, डाकघर, पुलिस थानों पर हमले और बहिष्कार आंदोलन में भाग लिया।
🎯 'भारत छोड़ो आंदोलन' के प्रमुख नेता
नाम. योगदान
महात्मा गांधी ‘करो या मरो’ का आह्वान
जवाहरलाल नेहरू आंदोलन के रणनीतिकार
सरदार पटेल. संगठन और नेतृत्व में भूमिका
अरुणा आसफ अली आंदोलन की प्रतीक बनीं
जयप्रकाश नारायण भूमिगत आंदोलनों में भूमिका
📊 भारत छोड़ो आंदोलन का महत्व :
1. राजनीतिक चेतना का चरम बिंदु था।
2. ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ें हिल गईं।
3. यह आंदोलन अंग्रेजों को यह समझाने में सफल रहा कि भारत को अब और गुलाम नहीं रखा जा सकता।
4. 1947 में स्वतंत्रता के लिए मार्ग प्रशस्त हुआ।
📚 भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्
तथ्य जानकारी
आंदोलन की तिथि 8 अगस्त 1942
स्थान अगस्त क्रांति मैदान, मुंबई
मुख्य नारा "करो या मरो"
रेडियो प्रसारण उषा मेहता द्वारा भूमिगत रेडियो संचालन
मूल्यांकन:
1. भारत छोड़ो आंदोलन के प्रमुख केंद्र थे - उत्तर प्रदेश बिहार मिदनापुर महाराष्ट्र और कर्नाटक।
2. छात्र मजदूर एवं कृषक आंदोलन की रीढ थे थे, जबकि उच्च वर्ग एवं नौकरशाही आंदोलन में तटस्थ बनी रही।
3. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सरकार के प्रति निष्ठा रखने वाले तत्वों को आंदोलनकारियों ने देशद्रोही माना। आंदोलन से स्पष्ट हो गया था कि भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना काफी गहराई तक घर कर चुकी है।
4. भारत छोड़ो आंदोलन से यह बात स्पष्ट हो गई थी कि भारतीयों की इच्छा के विरुद्ध भारत पर अब और अधिक शासन करना संभव नहीं है।
5. भारत छोड़ो आंदोलन की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह थी की स्वतंत्रता संघर्ष के एजेंडे में भारत को तुरंत आजादी दिए जाने की मांग को सम्मिलित किया गया था। इस आंदोलन के पश्चात कांग्रेस का नेतृत्व तथा भारतीय इस मांग के संदर्भ में कभी नरम नहीं पड़े।
6. भारत छोड़ो आंदोलन में जन सामान्य की भागीदारी और अप्रत्याशित थी लोगों ने अदम्य साहस और राष्ट्र भक्ति का परिचय दिया यद्यपि उन्होंने जो प्रताड़ना सही वह अत्यंत बर्बर एवं अमानवीय था तथा संघर्ष की परिस्थितियां भी उनके प्रतिकूल थीं किंतु आंदोलन के हर मोर्चे पर जनता ने अत्यंत सराहनीय भूमिका निभाई तथा आंदोलनकारी को पूर्ण समर्थन एवं सहयोग प्रदान किया।
निष्कर्ष (Conclusion):
भारत छोड़ो आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम की एक ऐसी ज्वाला थी जिसने ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिला दी। यह आंदोलन केवल राजनीतिक विरोध नहीं, बल्कि भारतवासियों की एकता, संकल्प और बलिदान का प्रतीक बन गया। इसने यह स्पष्ट संदेश दिया कि भारत अब आज़ादी से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करेगा।
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